Tuesday, July 6, 2010


आजकल बस गई है

एक महक सी

खुस्बुओ का मौसम

जग रहा तन -मन मे

सतरंगे पंखे वाली सुधियाँ

दस्तक दे रही है

कहीं तुम तो नहीं आने वाले

ओ' बन्धु!

तुम संग जाना था

गंगा मे पैर डालकर बैठने का सुख

तुम्हारे साथ पि थी भर

मस्त खुस्बुओ से भरी चांदनी

पहाड़ो का हल्कापन

और दूर तक फैली फूलो की घाटी

तुम्हारे साथ

मेरा हर पल भरा था तुमसे

तुम्हारे पावन ,बतरस से

आज भी मेरा हर पल

भरा है तुमसे

मन मे चमकती तुम्हारी आँखों से

तुम्हारी यादो से

Thursday, July 1, 2010

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