Sunday, October 29, 2017

its my first poetry book. plz read and givevfeedback.


Sunday, September 17, 2017

बाल कवितायेँ
लहर लहर सागर लहराता

इस धरती पर बड़े गर्व से लहर लहर सागर लहराता बने गंभीर हम ,हमको है सिखाता घुमड़ घुमड़कर बस ये कहना चाहता मन  गहराई से हो गहरा नाता विशाल होने  घमंड न इसको भाता बड़े प्रेम से सभी नदियों को ये अपनाता ग्राही से हमेशा बड़ा होता है दाता  न कोई छोटा न कोई बड़ा हमको है सिखाता  गहराई में रत्नो को है छुपाता गन रूपी रत्नो को हम उतारें जीवन में उफान उफनकर हमसे ये कहना चाहता लहर लहर सागर लहराता ''''
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गुलाब
काँटों में रहकर मुस्काता  है
विपत्ति में धैर्य रखना सिखाता गुलाब है
अपनी खुशबु सामान रूप से लुटाता गुलाब है
छोटी सी ज़िंदगी को अर्थमय बनता गुलाब है
नीरस को  सरस बनता  गुलाब है
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बारिश कब तुम आओगी
कितना हमें तडपाओगी
सूरज कितना देहक रहा है
पत्ता पत्ता झुलस रहा है
ठंडी फुहारें  बरसाओगी
बारिश कब तुम आओगी
अम्बर प्यासा ,प्यासी धरती
कब इनकी  भुझाओगी
बारिश  आओगी
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छुक छुक चलती ट्रैन
धुआं उडाती चलती ट्रैन
तुम भी चढ़े ,हम भी चढ़े
दोनों  मिलें दोस्त बने
बातें बढ़ी ,यारी बढ़ी
छुक छुक आगे बढ़ी ट्रैन
ये हवा बहे साथ साथ
रस्ते चलते हैं साथ साथ
हम  चलेंगे साथ साथ
चलती है साथ साथ ये ट्रैन
छुक छुक चलती ट्रेन
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मम्मी देखो न
 ये चाँद टुकुर टुकुर  तकता है
मुँह से तो कुछ न बोले
पर मन ही मन ये हस्ता है
चैन से मुझको सोने नहीं देता
खुद साडी रात चलता है
मम्मी  देखो न
ये चाँद टुकुर टुकुर  तकता है
इसको भी  चपत लगाओ
 खूब ज़ोर से डांट लगाओ
मुझको नींद आती है
फिर ये  सारी रात जगता है
मम्मी  देखो न
ये चाँद टुकुर टुकुर  तकता है
ये नहीं स्थिर मन का मन का
कभी घटता कभी बढ़ता है
कभी आकाश में छुप जाता है
 मुँह से तो कुछ न बोले
पर मन ही मन ये हस्ता है
मम्मी  देखो न
ये चाँद टुकुर टुकुर  तकता है