हमसे न पुछेये, हमारी कहानी
कभी लबो की हसी ,कभी आँखों का पानी
कभी करते हैं सरारत ,कभी नादानी
हमसे न ..................
किसी को हाल दिल का क्या बताये
कब हुआ ये अपना ,करता है मनमानी
गम ही होते हैं सच्चे साथी
ये खुशिया तो बस आनी जानी
हमसे न .............
कभी जिद थी उस मंजिल को पाने की
कितनी ही राहें खाक छानी
क्या मिलता कभी किनारा हमको
जब जिंदगी बन गई बहता पानी
नहीं चाहेये कोई मंजिल हमे
बस साथ हो कोई ,और राहें सुहानी
हमसे न ....................
Saturday, September 24, 2011
जिंदगी इस कदर , न ले
तू मेरा इन्तहां
हूँ मैं भी एक इंसान
हैं मेरे भी कुछ अरमान
जिंदगी इस .............
सारे दुःख मुझे दे दे
भले ही कंटीली राहें दे दे
पर मेरे अपनों से न छीन मुस्कान
उन्हें हर ख़ुशी देना
सफलता की बुलंदियां देना
उन्हें कभी दुःख न देना
सब कुछ सह सकती हूँ
पर नहीं देख सकती
उन्हें उदास , दुखी
जो मुझे प्यार करते है
जो मेरे अपने हैं ..............
तू मेरा इन्तहां
हूँ मैं भी एक इंसान
हैं मेरे भी कुछ अरमान
जिंदगी इस .............
सारे दुःख मुझे दे दे
भले ही कंटीली राहें दे दे
पर मेरे अपनों से न छीन मुस्कान
उन्हें हर ख़ुशी देना
सफलता की बुलंदियां देना
उन्हें कभी दुःख न देना
सब कुछ सह सकती हूँ
पर नहीं देख सकती
उन्हें उदास , दुखी
जो मुझे प्यार करते है
जो मेरे अपने हैं ..............
Sunday, August 21, 2011
जिंदगी मेरी परीक्षा लेती रही
कभी गिरती मैं ,कभी उठती रही
बस एक कसक दिल मे यही रही
समझा क्यों नहीं किसी ने मुझे
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
सिर्फ देना और देना ही सीखा मैंने
लेने की चाह कभी न रही
फिर भी मिली बेरुखी और तन्हाई
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
लाख गहरा हो सागर सही
पर मैं एक बूँद के लिए तरसती रही
आयी घटा बदल भी खूब बरसे
पर मेरे मन की धरती प्यासी रही
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
कभी मिटती ,कभी बनती रही
जिंदगी मेरी परीक्षा लेती रही
कभी गिरती मैं ,कभी उठती रही
बस एक कसक दिल मे यही रही
समझा क्यों नहीं किसी ने मुझे
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
सिर्फ देना और देना ही सीखा मैंने
लेने की चाह कभी न रही
फिर भी मिली बेरुखी और तन्हाई
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
लाख गहरा हो सागर सही
पर मैं एक बूँद के लिए तरसती रही
आयी घटा बदल भी खूब बरसे
पर मेरे मन की धरती प्यासी रही
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
कभी मिटती ,कभी बनती रही
जिंदगी मेरी परीक्षा लेती रही
वोही चेहरा
बरसो बाद आज फिर वही चेहरा दिखाई दे गया
वही मुस्कान ,वही अंदाज़
कुछ यादो की सोगात दे गया
मुस्करा पड़ी थी ,मुस्कान उसकी देखकर
खिल उठी थी मै, खिलता उसे देखकर
पर सोचती हू
कहीं ये सिलसिला ,फिर शुरू न हो
आगे बढ़ते पैरो में
यादो की ज़ंजीर न हो
छोड़ आयी जिन यादो को
वक़्त के किसी मोड़ पर
वर्तमान क्यों गवाऊं उन्हें यद् कर
सच है ये टुटा आइना फिर जुड़ नहीं सकता
टूटकर डाली से फूल फिर खिल नहीं सकता
जोड़ो कितना ही टूटे हुए धागे को गांठ पद ही जाती है
मत देख वो खवाब जो सच हो नहीं सकता
बरसो बाद आज फिर वही चेहरा दिखाई दे गया
वही मुस्कान ,वही अंदाज़
कुछ यादो की सोगात दे गया
मुस्करा पड़ी थी ,मुस्कान उसकी देखकर
खिल उठी थी मै, खिलता उसे देखकर
पर सोचती हू
कहीं ये सिलसिला ,फिर शुरू न हो
आगे बढ़ते पैरो में
यादो की ज़ंजीर न हो
छोड़ आयी जिन यादो को
वक़्त के किसी मोड़ पर
वर्तमान क्यों गवाऊं उन्हें यद् कर
सच है ये टुटा आइना फिर जुड़ नहीं सकता
टूटकर डाली से फूल फिर खिल नहीं सकता
जोड़ो कितना ही टूटे हुए धागे को गांठ पद ही जाती है
मत देख वो खवाब जो सच हो नहीं सकता
Monday, August 1, 2011
Thursday, July 14, 2011
Tuesday, March 29, 2011
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