Sunday, August 21, 2011

जिंदगी मेरी परीक्षा लेती रही

कभी गिरती मैं ,कभी उठती रही
बस एक कसक दिल मे यही रही
समझा क्यों नहीं किसी ने मुझे
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
सिर्फ देना और देना ही सीखा मैंने
लेने की चाह कभी न रही
फिर भी मिली बेरुखी और तन्हाई
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
लाख गहरा हो सागर सही
पर मैं एक बूँद के लिए तरसती रही
आयी घटा बदल भी खूब बरसे
पर मेरे मन की धरती प्यासी रही
क्या इसमें भी गलती मेरी रही
कभी मिटती ,कभी बनती रही
जिंदगी मेरी परीक्षा लेती रही

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