Thursday, June 28, 2012

क्या कहे इसे
दीवानगी ,पागलपन या अदम्य साहस
मूर्खता तो नहीं कह सकते
जब सोच -समझकर खुद पिया जाता है ज़हर
पता है इस राह की मंजिल नहीं
पर रास्ते बहुत खुबसूरत है
और इंसान जाता है उसी राह
खुद को बर्बाद करने की हिम्मत
सबमे कहाँ होती है तो
क्या कहा जाये इसे
मोह्बब्त ,इबादत या कुछ और
इतना मनोबल होता है उस समय
दहकते अंगारों पर भी उसे
पथ की दहकता नहीं
किसी की ख़ुशी दिखाई देती है
हँसते -हँसते लुटा देता है अपना सबकुछ
किसी एक के चेहरे पे
लेन को मुस्कान
आज तक नहीं कर पाया परिभाषित
कोई भी इंसान
क्या है ये ? खुद मिटकर भी
देना दुसरो को मुस्कान
प्रेम ,इश्क , चाहत ,और
भी है कई इसके नाम .........
वंदना शर्मा 

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