Sunday, May 20, 2012

उफ़ ये गर्मी 
ज्येष्ठ की तपती दोपहरी 
इतनी उमस और बेचैनी 
छीन लेती है साडी  उर्जा 
उसपर बिजली की ये मनमानी 
आँखे भी तरसे शीतल छाया को 
रुखा -रुखा मौसम 
बारिश को तरसे मन  
केसे खिलखिलाए मन 
उफ्फ्फ ! ये गर्मी 
कुछ कम नहीं हो सकती 
 कैसे सहती होंगी ,वो मजदूर औरते 
जो  दिन भर  खेतो  व् भत्तो पे मजदूरी करती हैं 
और एक मैं हु छोटी सी जान 
गिरी -गिरी  अब गिरी 
जाने कहाँ कब गिरी
उफ्फ्फ  ये गर्मी
थोड़ी सी बारिश रोज़ नहीं हो सकती
उफ़ ये गर्मी ..............
  वंदना 

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