एक अजीब दास्ताँ इसक की पढ़ी मैंने
गलियाँ फूलो की छोड़ , कांटो की राह चुनी मैंने
सबकी प्यास बुझाती नदिया देखी
नदियों की प्यास बुझाता समंदर देखा
पर उसी समंदर को प्यार में प्यासा देखा मैंने
दो किनारे कभी न मिल पाए
पर उन किनारों को पाने की आस में
तडपती लहरें देखी मैंने
धरती ने चाहा अम्बर से जब मिलना
एक नयी छटा क्षितिज की तब देखी मैंने
एक अजीब दास्ताँ इसक की पढ़ी मैंने
एक बूँद प्यार की आस में
सदिया लुटती देखी मैंने
कान्हा का प्यार भी देखा मैंने
राधा की तड़प भी देखी मैंने
खुद मिटकर भी किसी को जिंदगी देना
किसी की ख़ुशी के लिए
किसी को आंसू पीते देखा मैंने
टूटता तारा तो सबने देखा
पर जिससे वो अलग हुआ
उसका दर्द न देखा किसी ने
चाँद की सुन्दरता देखी
तारो की चमक भी देखी
असीम आकाश की शुन्यता को भी देखा मैंने
एक अजीब दास्ताँ इसक की पढ़ी मैंने
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