क्या कहे इसे
दीवानगी , पागलपन या अदम्य साहस
मूर्खता तो नहीं कह सकते
जब सोच -समझकर खुद पिया जाता है ज़हर
पता है इस राह की मंजिल नहीं
पर रास्ते बहुत खुबसूरत है
और इंसान जाता है उसी राह
खुद को बर्बाद करने की हिम्मत
सबमे कहाँ होती है
तो क्या कहा जाये इसे
दीवानगी , पागलपन या अदम्य साहस
मूर्खता तो नहीं कह सकते
जब सोच -समझकर खुद पिया जाता है ज़हर
पता है इस राह की मंजिल नहीं
पर रास्ते बहुत खुबसूरत है
और इंसान जाता है उसी राह
खुद को बर्बाद करने की हिम्मत
सबमे कहाँ होती है
तो क्या कहा जाये इसे
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