ज्येष्ठ की ताप्ती दोपहरी
इतनी उमस और बेचैनी
छीन लेती है साडी ऊर्जा
उस पर बिजली की आँख मिचौनी
आँखे भी तरसे शीतल छाया को
रुखा मौसम
बारिश को तरसे मन
कैसे खिलखिलाए मन
उफ़! ये गर्मी
कैसे सेहटी होंगी
वो मज़दूर औरते
जो दिनभर
खेतो व् भट्टो पर मज़दूरी करती हैं
और एक मैं हु छोटी सी जान
गिरी गिरी अब गिरी
कहाँ गिरी
उफ़!ये गर्मी
कुछ हो सकती
थोड़ी सी बारिस रोज़ नहीं हो सकती
पर ये तो प्रकृति का नियम है
कहीं ख़ुशी तो गम
कहीं आँखे नाम हैं
किसी के लिए जो ज़रूरी है
किसी के लिए वो असहनीय बेदम है
ईश्वर तेरी सृष्टि ,तेरे नियम
दे दे थोड़ी थोडा संयम
जानती हु कुछ नहीं हो सकता
शिकायत करने से
होगा वही जो होना है पर नहीं सही जाती ये गर्मी
इतनी उमस और बेचैनी
छीन लेती है साडी ऊर्जा
उस पर बिजली की आँख मिचौनी
आँखे भी तरसे शीतल छाया को
रुखा मौसम
बारिश को तरसे मन
कैसे खिलखिलाए मन
उफ़! ये गर्मी
कैसे सेहटी होंगी
वो मज़दूर औरते
जो दिनभर
खेतो व् भट्टो पर मज़दूरी करती हैं
और एक मैं हु छोटी सी जान
गिरी गिरी अब गिरी
कहाँ गिरी
उफ़!ये गर्मी
कुछ हो सकती
थोड़ी सी बारिस रोज़ नहीं हो सकती
पर ये तो प्रकृति का नियम है
कहीं ख़ुशी तो गम
कहीं आँखे नाम हैं
किसी के लिए जो ज़रूरी है
किसी के लिए वो असहनीय बेदम है
ईश्वर तेरी सृष्टि ,तेरे नियम
दे दे थोड़ी थोडा संयम
जानती हु कुछ नहीं हो सकता
शिकायत करने से
होगा वही जो होना है पर नहीं सही जाती ये गर्मी
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