Saturday, July 28, 2012

यह कविता मेरी छोटी बहन विनय को समर्पित है ............
एक थी लड़की नकचढ़ी
बाते करते बड़ी -बड़ी
गुस्सा हरदम नाक पे रहता
हँसती जैसे फूलों की लड़ी
चूहे से डर जाती वो
फिर भी शूरमा कहलाती वो
सबपे रोब जमाती वो
ऑर्डर देती खड़ी -खड़ी
एक थी लड़की नकचढ़ी ..........
किताब न उसके हाथ से हटती
राम जाने क्या क्या पढ़ती
आती जब परीक्षा की घड़ी
कर देती मेरी भी खटिया खड़ी
एक थी लड़की नकचढ़ी
 बातो की चाट  बनाती
 ख़ूब हींग - मिर्च उसमे लगाती
बड़ा प्यारा  सा मुह बनाती वो
मीठी -मीठी डाट लगाती 
अपनी बात पे रहती अड़ी -अड़ी  
एक थी लड़की .................
वंदना शर्मा 

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