यह कविता मेरी भतीजी मिट्ठू की याद में लिखी गयी है ,जब वो मेरे पास थी हम दोनों बहुत सरारते किया करते थे , पानी में छप -छप करना , शोर मचाना , गाने गाना दोनों दोनों साथ साथ करते ........
डेड़ फुट का नन्हा सा कद
होंसले उसके सबसे बुलंद
आसमां को मुट्ठी में कैद करना चाहे
कभी इधर कभी उधर
हिरनी सी उछल -कूद मचाए
नहीं लगता उसे किसी से डर
उसकी हरकतों से हम सब जाते डर
दिन भर जाने क्या क्या करती
सरे जहाँ की बाते करती
सबकी निगाहें उस पर रहती
कब जाने क्या कर दे
किसको पीटे किसे बाहों में भर ले
चंचल ,चपल ,नटखट नन्ही सी जान
इस नन्हे आतंकवादी से हम सब हैरान
इतनी उर्जा इतना जोश
उड़ा देती वो सबके होश
आगे -आगे वो ,पीछे -पीछे हम
सबकी लाडली करती सबकी नाक में दम .................
वंदना शर्मा
डेड़ फुट का नन्हा सा कद
होंसले उसके सबसे बुलंद
आसमां को मुट्ठी में कैद करना चाहे
कभी इधर कभी उधर
हिरनी सी उछल -कूद मचाए
नहीं लगता उसे किसी से डर
उसकी हरकतों से हम सब जाते डर
दिन भर जाने क्या क्या करती
सरे जहाँ की बाते करती
सबकी निगाहें उस पर रहती
कब जाने क्या कर दे
किसको पीटे किसे बाहों में भर ले
चंचल ,चपल ,नटखट नन्ही सी जान
इस नन्हे आतंकवादी से हम सब हैरान
इतनी उर्जा इतना जोश
उड़ा देती वो सबके होश
आगे -आगे वो ,पीछे -पीछे हम
सबकी लाडली करती सबकी नाक में दम .................
वंदना शर्मा
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