Saturday, July 28, 2012

जब मै छोटी थी बहुत बोलती थी , अब भी बोलती हु कभी कभी ,पर जब खुश होती हू तब ज्यादा बोलती हू , नहीं तो खामोश ही रहती हू ..............
मासूम ,निर्दोष ,चंचल मुस्कान चेहकती है
दूसरो के दुखदर्द को अपना समझती है
खिलती है ,मुस्कराती है ,सबको हसाती है
कहते है सब उसको 'बहुत -बहुत बोलती है
सबको प्यार लुटाती वो
सबके काम आती वो
बस ज़रा सा प्यार चाहती वो
उफ्फ्फ ! 'बहुत बोलती है '
लड़ती है ,झगड़ती है ,हँसती है
रूठती है ,रुठो हुओ को मनाती है
गम छुपाकर अपना हरदम मुस्कराती है
कैसी लड़की है-'बहुत बोलती है'
सबकी सुनती है ,कुछ अपनी सुनाती है
बच्चे ,बूढ़े सभी से बतयाती है
नहीं किसी का दिल दुखाती है
कहते है सब उसको 'बहुत बोलती है' .......
वंदना शर्मा

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