Wednesday, July 18, 2012

मोसम सावन का हो और बहार न हो
ऐसा भी होता है कहीं , नहीं होता ना
त्यौहार तीज का हो ,और झूला न हो
ऐसा भी होता है कहीं ,नहीं होता ना
घर से तो निकले मंजिल की ओर
और कोई राह ना मिले
ऐसा भी होता है कहीं ,नहीं होता ना
फूलों का गुच्छा हो और कोई काँटा न चुभे
बदलो की गड -गड हो और बारिश न हो
ख़ुशी से शोर मचाऊ और कोई वजह न हो
ऐसा भी होता है कहीं ,नहीं होता ना
क्रिया हो और प्रतिक्रिया न हो
परिणाम हो और कारन न हो
दिन तो हो और रात न हो
बसंत तो आये ,पर जाये न कहीं
ऐसा भी होता है कहीं , नहीं होता ना
होता है ,होता है ऐसा भी होता है
मेरे सपनो की दुनिया में
कुछ भी हो सकता है
ऐसा भी होता है ,वैसा भी होता है
जैसा भी होता है ,अच्छा ही होता है
तो फिर गम क्या ,हँसो और हँसते रहो
ऐसा भी होता है कहीं , नहीं होता ना ..................
वंदना शर्मा

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