बस यु ही
लड़ते -झगड़ते ,रूठते -मनाते
समय कुछ यूँ उड़ गया पंख लगाकर
कैसे -कैसे मोड़ आये ज़िंदगी के
कभी हंसकर रोये
कभी रोकर मुस्कराये
कभी की शरारतें
कभी कट गयी रातें
बातों ही बातों में
कितनी दूर चले आये हम
यूँ ही चलते -चलते
वो लड़कपन ,वो बचपन
जाने कहाँ खो गया
कुछ रिश्ते बदल गए
कुछ हम बदल गए
कुछ बदल गयी ये ज़िंदगानी
एक -दूजे से बात करने के लिए
बहाना ढूंढते हैं आज
क्यों इतना व्यस्त सब हो गए??
वंदना शर्मा
नई दिल्ली
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