Thursday, August 9, 2018

bas yu hi

बस यु ही 
लड़ते -झगड़ते ,रूठते -मनाते 
समय कुछ यूँ उड़ गया पंख लगाकर 
कैसे -कैसे मोड़ आये ज़िंदगी के 
कभी हंसकर रोये 
कभी रोकर मुस्कराये 
कभी की शरारतें 
कभी कट गयी रातें 
बातों ही बातों में 
कितनी दूर चले आये हम 
यूँ ही चलते -चलते 
वो लड़कपन ,वो बचपन 
जाने कहाँ खो गया 
कुछ रिश्ते बदल गए 
कुछ हम बदल गए 
कुछ बदल गयी ये ज़िंदगानी 
एक -दूजे से बात करने के लिए 
बहाना ढूंढते हैं आज 
क्यों इतना व्यस्त सब हो गए??
वंदना शर्मा 
नई दिल्ली 

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