Thursday, August 9, 2018

kuch aisa ho mera ghar

मेरा घर कुछ ऐसा हो 
जहाँ आती हो सूरज की पहली किरण 
जहाँ सुनाई दे पक्षियों का कलरव 
जहाँ से दिखाई दे हरियाली ,खुला आसमान 
चाँद ,सूरज ,तारे 
जहाँ एक कोना हो मेरी किताबों का 
जहाँ मैं बुन सकूँ अपने सपने 
कर सकूँ मैं सृजन 
रच सकू कोई रचना 
जहाँ मिल सके विचारों को उड़ान 
जहाँ अभिव्यक्ति की हो स्वंत्रता 
नर -नारी की हो समानता 
मानवता ही धर्म हो 
पर -सेवा ही कर्म हो 
जहाँ बच्चे भरते हो किलकारी 
जहाँ बेटियां हो सबसे प्यारी
 जहाँ पा सकू मैं स्वम् को 
अपने अस्तित्व को  अपने स्वाभिमान को 
कुछ ऐसा हो----मेरा घर 

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