कोई क्या जाने इश्क क्या है
खुद को फ़ना कर दे
दिल को समझना अगर है
'मेँ 'को खोकर ,इश्क पाया जाता है
खुद को भुलाया जाता है
अहम् को दफनाया जाता है
किसी की ख़ुशी की खातिर आंसू पीना पड़ता है
एक आग का दरिया है
अंगारो पर चलना पड़ता है
कोई क्या जाने इश्क क्या है
दुनिया बेमानी लगती है
जब कोई अपना लगता है
हक़ीक़त दुश्मन लगती है
जब सपना सच्चा लगता है
सब जग वैरी हो जाता है
कोई क्या जाने इश्क क्या है
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उसे शिकायत है
मुझे उसके सिवा कुछ दिखाई नहीं देता
मेरा समर्पण ,मेरा प्यार उसे दिखाई नहीं देता
एक मुझे छोड़ सारे ज़माने की परवाह उसे
कहीं ऐसा न हो एक दिन
सारा ज़माना हो साथ उसके
एक मैं ना हूँ पास उसके
तब जाकर समझ आये उसको
क्या खोया क्या पाया उसने। ... ---
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