Friday, August 3, 2018

likhu kya - ek uljhan

सब कहते है लिखो बेटा 
पर लिखू क्या 
जब भी लिखने बैठु 
तभी विचारशून्य हो जाती हूँ 
वैसे तो ये मन बड़ा बावरा 
सारे दिन दौड़ लगाए विचारो की
 जैसे कोई एक्सप्रेस ट्रैन 
पल में इस पार 
पल में उस पार 
पर जब भी मैं बैठू लिखने लगूँ सोचने 
सारे इंजन फेल 
मन  गाडी एक कदम भी ना सरक पाए 
पटरी से उतरी -उतरी जाए 
रे मन ! तुझको क्या दुश्मनी मुझसे 
काहे की हसी उढ़ाये 
तू मेरी सुन ,मैं सुनु तेरी 
कुछ अपनी सुना ,कुछ सुन मेरी 
आज तो मैं लिख डालू पूरी पोथी 
पर लिखुँ क्या ?

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