सब कहते है लिखो बेटा
पर लिखू क्या
जब भी लिखने बैठु
तभी विचारशून्य हो जाती हूँ
वैसे तो ये मन बड़ा बावरा
सारे दिन दौड़ लगाए विचारो की
जैसे कोई एक्सप्रेस ट्रैन
पल में इस पार
पल में उस पार
पर जब भी मैं बैठू लिखने लगूँ सोचने
सारे इंजन फेल
मन गाडी एक कदम भी ना सरक पाए
पटरी से उतरी -उतरी जाए
रे मन ! तुझको क्या दुश्मनी मुझसे
काहे की हसी उढ़ाये
तू मेरी सुन ,मैं सुनु तेरी
कुछ अपनी सुना ,कुछ सुन मेरी
आज तो मैं लिख डालू पूरी पोथी
पर लिखुँ क्या ?
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