ए फूल !क्या कहूं तेरी व्यथा
था डाली पर तो ,महका रहा था उपवन
टूटा डाली से ,क्या -क्या हुआ
कभी माला गुंथा गया
कभी मंदिर में चढ़ाया गया
किसी ने प्यार से उठाया
किसी क्रूर के हाथों मसला गया
किसी के पैरो तले कुचला गया
कहीं हार ,गजरा ,श्रद्धा सुमन
नाम -उपनाम मिले
पर अंत में उसी माटी ने तुझे अपनाया
पहले तुझे पूरा मिटाया
फिर नया अंकुर उगाया
नयी कोंपल फूटी
फिर से तू फूल बना
ए फूल !इतना बता
क्या मिला तुझे होकर जुदा उस डाली से
अपनी ज़िंदगी भी तू जी नहीं पाया
वंदना शर्मा
नई दिल्ली
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