Sunday, August 5, 2018

yaaden

कोशिश बहुत की रोकने की 
यादों की उफनती लेहरो को 
पर बहुत ज़िद्दी हैं वो 
और उफनती है और उफनती हैं 
जैसे लहरें साथ लाती हैं अपने 
कोई सीप ,कोई नन्हा मोती 
उसी तरह तुम्हारी यादें 
साथ लाती हैं 
कुछ अनकही -अनछुई खुशबुए 
और भीग जाती हैं पलके 
उन यादों में 
जैसे कोई लहर छू जाती है पैरों को 
और सिहर जाता है मन 
एक अनजाने डर से 
डर ,तुम्हे खोने का 
डर सपने टूटने का 
लेहरो में बिखर जाने का डर 
पर ए दोस्त !
संजोकर रखूंगी मैं इन यादों को 
जैसे किताब में रखी है गुलाब की सुखी पत्तियां 
पर उनकी खुशबु आज भी भर देती है ताजगी से मुझे 
तुम्हारी यादों की खुशबु 
उसी तरह मुझे ताजगी देती रहेगी 
खोलूंगी जब भी मैं अपनी यादों के पन्ने 
और 
उन पर लिखा होगा तुम्हारा नाम 
तुम्हारी यादें !

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